सिंधु घाटी सभ्यता स्थल
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल
सिंधु घाटी सभ्यता या संस्कृति या हड़प्पा सभ्यता या संस्कृति की खोज के प्रारंभिक चरणों में इसके अवशेष प्रमुख रूप से सिंधु नदी के तटीय क्षेत्रों में पाए गए थे। इस सभ्यता के क्षेत्र के विस्तार को देखते हुए इसके सर्वप्रथम ज्ञात स्थान हड़प्पा के नाम पर इसे हड़प्पा संस्कृति कहा गया था।हड़प्पा संस्कृति सिंध बलूचिस्तान पंजाब राजस्थान हरियाणा पश्चिम उत्तर प्रदेश के सीमांत प्रदेश काठियावाड़ा और इसके पूर्व भागों में फैली थी। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था। अब तक हड़प्पा संस्कृति के 1000 से ज्यादा स्थानों का पता लगा चुका है। सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल संस्कृति के प्रमुख केंद्र हे- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदरो,रोपड़ व रंगपुर,लोथन,कालीबंगा,संघोल,मिताथल और बनवाली,।
बीसवीं सदी की शुरूआत तक इतिहास वक्ताओं की धारणा थी कि वैदिक सभ्यता भारत की प्राचीनतम सभ्यता है। लेकिन बीसवीं सदी के तीसरे दशक में खोजे गए स्थलों से यह साबित हो गया कि वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता विद्यमान थी। जिसे हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता था। क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त हुए थे ।तथा आरंभिक स्थलों में से अधिकांश सिंधु नदी के किनारे अवस्थित थे। सिंधु घाटी सभ्यता की विस्तार अवधि 2500 ई,पू, से 1750 ई, पू, थी।उत्तर पाषाण काल से आगे चलकर मनुष्य बर्बरता से उठकर सभ्यता के युग में प्रवेश किया था। विश्व की आदित्य सभ्यता नदियों की घाटियों में विकसित हुई थी। भारत में मानव सभ्यता के प्रथम ठोसअवशेष सिंधु घाटी में पाए जाते हैं।सिंधु घाटी नदी के तट पर परिष्कृत सभ्य मानव रहते थे।इस सभ्यता के अवशेष प्रायः सिंधु घाटी क्षेत्र में पाए जाने के कारण इसका नाम सिंधु घाटी सभ्यता पड़ा। इसे हड़प्पा संस्कृति के नाम से भी जाना हे।सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल निम्नलिखित है
- हड़प्पा
- मोहनजोदड़ो
- चन्हूदड़ो
- कालीबंगा
- लोथल
- बनवाली
- रोपड़ व रंगपुर
- मिताथल
- संघोल
हड़प्पा
पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में रावी नदी के सूखे हुए मार्ग पर लाहौर और मुल्तान के बीच हड़प्पा नामक स्थल अवस्थित है। वैदिक साहित्य में इसे हरियूपीया कहा गया है। हड़प्पा संस्कृति के संबंध में सर्व प्रथम प्रमाणिक लेख मेसन नामक अंग्रेज यात्री का है, जिसने सन 1826 में इस के खंडहरों को देखा था। इसी प्रकार सन 1831 में पंजाब के राजा रणजीत सिंह से मिलने गए अंग्रेज कर्नल बंर्स ने भी इस खंडहरों को देखा और इसके टूटी फूटी गढ़ी का उल्लेख किया। सन 1853 और 1857 ईसवी में अलेक्जेंडर कनिंघम ने हड़प्पा के खंडहरों का निरीक्षण किया था, परंतु 1920 ईस्वी तक इतिहासकारों को इस सभ्यता के बारे में लेस मात्रा में भी ज्ञान नहीं था। इस स्थल के उत्खनन हुआ अध्ययन में सर जॉन मार्शल एवं दयाराम साहनी के नाम भी उल्लेखनीय हैं हड़प्पा दो खंडों (पूर्वी एवं पश्चिमी) में विभक्त है। पूर्वी खंड को क्षेत्रीय लोगों ने नष्ट कर दिया था पश्चिमी खंड में किलेबंदी कृतिम चबूतरे पर पाई गई है। पुरातत्वविदों ने प्राप्त सामग्रियों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि यहां की संस्कृति उत्कृष्ट एवं व्यवस्थित नगरीय जीवन का विकसित सभ्यता की परिचाईका थी।
मोहनजोदड़ो
पाकिस्तान में सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के तट पर मोहनजोदड़ो स्थित है। इसका शाब्दिक अर्थ प्रेतों का टीला होता है हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के बीच की दूरी 500 किलोमीटर थी। किंतु सिंधु नदी के माध्यम से दोनों जुड़े थे इस स्थल के उत्खनन में पुरातत्वविद राखल दास बनर्जी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। इस स्थल में सात तहों की व्यवस्थित खुदाई के परिणाम स्वरुप विकसित सभ्यता की जानकारी मिली थी।यह संपूर्ण क्षेत्र गारे और कच्ची ईंटों का चबूतरा बनाकर ऊंचा उठाया गया था। और सारा निर्माण कार्य इस चबूतरे के ऊपर किया गया था । कच्ची ईंटों से दीवार बनाकर किलेबंदी की गई थी मीनारें और बुर्ज बनाए गए थे। यहां की सड़कें एक दूसरे को संपूर्ण 90 डिग्री अंश पर काटती है। पक्की ईंटों से कई मंजिले वाले मकान के अवशेष विशिष्ट जल प्रणाली विभिन्न खंडों में विभक्त नगर एवं व्यवस्थित जीवन की ओर इंगित करता है।
चन्हूदड़ो
डॉक्टर मैक को चन्हूदड़ो की खुदाई में तीन संस्कृतियों के अवशेष उपलब्ध हुए हैं । इन सभ्यताओं के अवशेष लगभग 8 मीटर गहराई के नीचे जल में पड़े हुए थे। यह स्थल सिंध प्रांत में ही मोहनजोदड़ो से 130 किलोमीटर दूर स्थित है। इस स्थल को सीबी और जय के वी सिंधु नदी की बाढ़ की मिट्टी का विस्तार माना जाता है। इस स्थल के छोटे ही भाग का उत्खनन हुआ जिसमें मनके बनाने के कारखाने का विशेष प्राप्त हुआ है।
कालीबंगा
कालीबंगा उत्तरी राजस्थान के गंगानगर जिले में गंगा नदी के तट पर कालीबंगा स्थित है। जिसका शाब्दिक अर्थ काले रंग की चूड़ियां होता है।इस स्थल का उत्खनन कार्य स्वाधीनता के पश्चात सन 1960 में किया गया था। यहां के मकान कच्ची ईंटों से बने थे । जबकि मोहनजोदड़ो के मकान पक्की ईंटों से बने हुए थे। जल निकासी की सुविधा इस नगर में नहीं थी।इस नगर के पूर्व भाग में यज्ञ अनुष्ठान के अवशेष और पश्चिमी भाग में कब्रिस्तान के अवशेष प्राप्त हुए थे। यहां खुदाई में मिलने वाली अन्य वस्तुओं में बर्तन, तांबे के औजार, चूड़ियां, अंकित मोहरे, बाट, खिलौने, मिट्टी की मूर्तियां अधिक उल्लेखनीय हे।
लोथल
गुजरात प्रांत के अहमदाबाद जिले में खंभात की खाड़ी के ऊपर लोथल स्थित है ।इस स्थल के उत्खनन से जानकारी मिलती है कि इसी समय इस नगर का विस्तार 3 से 5 किलोमीटर से अधिक किंतु 5 किलोमीटर से कम रहा होगा। पूरी नगरी एक दीवार से गिरी हुई थी। इस के पूर्वी भाग में पक्की ईंटों का तालाब जैसा घेरा मिलता है। यहां उत्खनन से आभूषण मोहरे,तांबे की चूड़ियां, मछली पकड़ने के कांटे, आरा, पहिया, घोड़ा ,पाषाण के बाट, इत्यादि सावंत मिले हैं। यहां के मकानों में गंदे पानी के निकास की व्यवस्था थी। कहीं कही कुएं भी मिले हैं। यहां एक बंदरगाह के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं ।लोकल में सबसे महत्वपूर्ण चीज के रूप में एक विशाल गोदी (बंदरगाह) मिला है ।इसमें जहाजों को समुद्र की ओर ले जाने का समुचित प्रबंध था। हनुमान लगाया गया है कि कभी यहां के सुदूर पश्चिमी देशों से व्यापारिक संबंध रहा होगा
बनवाली
बनवाली स्थल हरियाणा प्रांत के हिसार जिले में स्थित है। यहां पर कच्ची व पक्की ईंटों के अवशेष समान रूप से मिलते हैं। यहां प्राप्त अवशेष कालीबंगा के नगर योजना के आस पास ही बैठे हैं।
रोपड़ व रंगपुर
हड़प्पा से लगभग 354 किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित रोपड़ में कोटला निहंँग खा के स्थान पर सन 1953 में खुदाई की गई थी ।खुदाई श्री यज्ञदत्त के संरक्षण में की गई थी खुदाई में 6 सतहें प्राप्त हुई हैं।प्रथम सतह हड़प्पा सभ्यता की समकालीन है इससे यह पता चलता है ।कि सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास सतलज नदी के किनारे पर स्थित रोपड़ तक था ।इसमें तीन स्थान लोकप्रिय हैं ।यह रोपड़, संघोल और चंडीगढ़ के समीप के स्थल हैं।
मिताथल
सन 1968 में श्री सूरजभान के नेतृत्व में खुदाई का काम प्रारंभ किया गया था।मिताथल स्थान हरियाणा राज्य के हिसार जिले का एक गांव है। जहां खुदाई के दौरान पत्थर के मनके, चमकदार रंगीन कंगन, मिट्टी के पकाए गए रंग बिरंगे खिलौने, पशुओं की मूर्तियां, पॉलिशदार बर्तन, पत्थर के बाट, छोटी छोटी गाड़ियों के पहिए,तथा हाथी दांत के पिन प्राप्त हुए हैं। एक खलियान की आकृति में स्थान प्राप्त हुआ है। यहां की गलियां और सड़के पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर सीधी बनी हुई है। यह सभी हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से मिलती-जुलती हैं।
संघोल
रोपड़ के समीप पंजाब के लुधियाना जिले में संघोल नामक स्थान में यह सभ्यता प्राप्त हुई है। यह रोपड़ में 32 किलोमीटर दूर स्थित है। सन 1968 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने यहां की खुदाई करवाई थी ।जिसमें अनेक प्रकार की वस्तुएं प्राप्त हुई थी। प्राप्त वस्तुओं में अनेक प्रकार के बर्तन,मोहरे,मूर्तियां, मिट्टी के भवन, आदि प्राप्त हुए हैं ।यहां से प्राप्त वस्तु हड़प्पा में मिली वस्तुओं से मिलती जुलती है। जिससे या अंदाजा लगाया जाता है कि शायद यह स्थान हड़प्पा संस्कृति का प्रमुख केंद्र रहा होगा।
उपसंहार
आज हमने अपने इस आर्टिकल में सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थलों की जानकारी प्राप्त कराई है।सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के इन प्रमुख केंद्रों का अध्ययन करके हमें यह ज्ञात हुआ है, कि यह सभी प्रमुख केंद्र प्राचीन इतिहास में सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख केंद्र रहे होंगे।