indus valley civilization in hindi series,
प्रस्तावना
आज हम अपने इस आर्टिकल में indus valley civilization in hindi series के अंतर्गत सिंधु सभ्यता के टॉपिक पर निम्नलिखित जानकारी निम्न विषयों पर प्राप्त करेंगे: World History,Facts,
Location,Features, Evidences जिसे हिंदी में सिंधु घाटी सभ्यता यह हड़प्पा सभ्यता या सरस्वती सिंधु हड़प्पा संस्कृति का इतिहास तथ्य विशेषता एवं साक्ष के महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करेंगे।
सामान्य अर्थों में अतीत के विषयों का अध्ययन इतिहास कहलाता है।हेरोडोटस (यूनानी)को इतिहास का पिता कहा जाता है ।प्राचीन भारतीय इतिहास की सामग्री को तीन भागों में बांटा जाता है।
- प्रागैतिहासिक काल : लिखित साक्ष्य नहीं मिलता।
- आद्यऐतिहासिक काल : पुरातात्विक व लिखित साक्ष्य दोनों उपलब्ध किंतु इन्हें पढ़ने में सफलता नहीं मिली है जैसे - सिंधु घाटी की सभ्यता की मुहर एवं लेख।
- ऐतिहासिक काल : प्राचीन इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक व साहित्य स्त्रोतों के अलावा विदेशी यात्रियों के विवरण का सहारा लेना पड़ता है।
बीसवीं सदी की शुरूआत तक इतिहास वक्ताओं की
धारणा थी कि वैदिक सभ्यता भारत की प्राचीनतम सभ्यता है। लेकिन बीसवीं सदी के तीसरे दशक में खोजे गए स्थलों से यह साबित हो गया कि वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता विद्यमान थी। जिसे हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता था। क्योंकि इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थान से प्राप्त हुए थे ।तथा आरंभिक स्थलों में से अधिकांश सिंधु नदी के किनारे अवस्थित थे। सिंधु घाटी सभ्यता की विस्तार अवधि 2500 ई,पू, से 1750 ई, पू, थी।उत्तर पाषाण काल से आगे चलकर मनुष्य बर्बरता से उठकर सभ्यता के युग में प्रवेश किया था। विश्व की आदित्य सभ्यता नदियों की घाटियों में विकसित हुई थी। भारत में मानव सभ्यता के प्रथम ठोसअवशेष सिंधु घाटी में पाए जाते हैं।सिंधु घाटी नदी के तट पर परिष्कृत सभ्य मानव रहते थे।इस सभ्यता के अवशेष प्रायः सिंधु घाटी क्षेत्र में पाए जाने के कारण इसका नाम सिंधु घाटी
सभ्यता पड़ा। इसे हड़प्पा संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है ।
- सन 1921 ईस्वी में रायबहादुर दयाराम साहनी ने अविभाजित पंजाब के मोंटगोमरी जिले के हड़प्पा नामक स्थान से कुछ प्राचीन खंडहरों की खोज की थी।
- इस खोज से पूर्व यह धारणा प्रचलित थी कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता वैदिक सभ्यता थी। किंतु सिंधु घाटी में उत्खनन के पश्चात प्राप्त अवशेषों ने इस धारणा को बदल दिया था ।
- ऋवैदिक सभ्यता से सब शताब्दियों पूर्वकि यह सभ्यता पश्चिम की एलम मे मेसोपोटामियां सुमेर यूनान की सभ्यता से अधिक उन्नत थी।
- सन 1922 ईस्वी में राखालदास बेनर्जी ने सिंध के लड़काना जिले में बौद्ध स्तूप की खोज करते हुए कुछ दिनों की खुदाई करवाई जहां से उन्हें भूगर्भ में पक्की नालियों और कमरों के अवशेष मिले।
- इसके पश्चात इस पूरे क्षेत्र में सघन उत्खनन कार्य करवाया गया जिसमें अनेक ध्वंस अवशेष और महत्वपूर्ण पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई।
- हड़प्पा में दयाराम साहनी द्वारा करवाई गई खुदाई में एक छोटे दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए थे।इसके उत्तरी प्रवेश द्वार और रावी नदी के तट के बीच अन्न भंडार श्रमिक आवास और ईटों से जुड़े गोल चबूतरे थे। जिसमें अनाज रखने के लिए कोटर बने थे ।
- इस सभ्यता की खोज में पुरातत्व विभाग जिन स्थानों में खुदाई करवाई गई उनमें हड़प्पा पंजाब के मोन्टोगुमरी जिले में मोहनजोदड़ो,सिंध लरकाना जिले में,चन्हूदड़ो
- और नाल बलोचिस्तान,प्रमुख हैं ।
- इन प्रमुख केंद्रों के अतिरिक्त आसपास की 40 बस्तियों की खुदाई के द्वारा इस सभ्यता के बीच का अंतर हड़प्पा संस्कृति के विस्तार को प्रदर्शित करता है। इस सभ्यता के अवशेष सौराष्ट्र से लेकर पूर्वी राजस्थान और पूर्वी पंजाब तक प्राप्त होते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना विशेषता
सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता नगर योजना थी।नगरों में सड़के व मकान विधिवत बनाए गए थे मकान पक्की ईंटों के बने होते थे तथा सड़कें सीधी होती थी।
- प्रत्येक सड़क और गली के दोनों और पक्की नालियाँ बनाई गई थी नालियाँ पक्की एवं ढकी हुई थी।
- सिंधु सभ्यता की ईंटों की विशेषता यह है कि उन पर किसी प्रकार का चित्र नहीं मिलता था कुछ कुछ कच्ची ईंटों पर कुत्तों और कौवो के पंजों के निशान मिलते थे।
- सर्वप्रथम 1921 ईस्वी में रायबहादुर दयाराम साहनी ने हड़प्पा नामक स्थान पर इसके अवशेष खोजे थे।
- इस सभ्यता का विस्तार पंजाब सिंध बलूचिस्तान गुजरात राजस्थान जम्मू और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था।
- उत्तर में मांदा जम्मू दक्षिण में, नर्मदा का मुहाना, पश्चिम में मकान समुद्र तट (बलूचिस्तान).उत्तर पूर्व में मेरठ(उत्तर प्रदेश)और पूर्व में आलमगीरपुर में इस सभ्यता की चौहददी थी।
- स्नानागार प्रायः मकान के उस भाग में बनाए जाते थे जो सड़क अथवा गली के निकटतम होते थे।
- सिंधु सभ्यता का क्षेत्र त्रिभुज आकार का था तथा इसका क्षेत्रफल 1299600 वर्ग किलोमीटर था।
- मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिलाथा जो 11.28 मीटर लंबा 7.01 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा था (39 5फीट 23 फीट 8 फीट)इस स्नानागार का प्रयोग अनुष्ठािनक स्नान के लिए किया जाता था।
- सिंधु सभ्यता में नगर प्रायः दो भागों में बटे होते थे ऊपरी भाग अथवा सीटेडल citedel तथा निचला भाग सिटेडल में जिन इमारतों खाध भंडार ग्रह महत्वपूर्ण कार्यशाला में तथा धार्मिक इमारतों स्थिति थी निचले भाग में लोग रहा करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता का या हड़प्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन विशेषता
सेंधव निवासियों के जीवन का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
सिंधु रहता उसकी सहायक नदियां प्रतिवर्ष उर्वरा मिट्टी बहा कर लाती थी तथा पाषाण एवं कांस्य निर्मित उपकरणों की सहायता से खेती की जाती थी।
- यहां के प्रमुख खाद्यान्न गेहूं तथा जौ थे खुदाई में गेहूं तथा जौ के दाने मिले थे।
- फलों में केला नारियल खजूर अनार नींबू तरबूज आदि का उत्पादन होता था।
- कृषि के साथ-साथ पशुपालन का भी विकास हुआ था।कूबड़ दार वृषभ का मुहरों पर अंकन बहू आयात में मिलता है। अन्य पालतू पशुओं में बैल गाय भैंस कुत्ते सूअर भेड़ बकरी हिरण खरगोश आदि थे।
- सुरकोटड़ा से प्राप्त वस्तु तथा लोथल और रंगपुर से प्राप्त अशोक की मृण्मूर्तियों के आधार पर अब यह निष्कर्ष निकाला जा रहा है सेंधव निवासी अश्व से परिचित है यह हाथी से भी परिचित थे।
- कृषि तथा पशुपालन के साथ-साथ उद्योग एवं व्यापार भी अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे वस्त्र निर्माण किस काल का प्रमुख उद्योग था।
- सूती वस्त्रों के अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी कपास उगाना भी जानते थे। विश्व में सर्वप्रथम यही के निवासियों ने कपास की खेती प्रारंभ की थी।
- इस सभ्यता के लोगों की मोहरे एवं वस्तुएं पश्चिम एशिया तथा मिस्र में मिली है जो दिखाती हैं। कि उन देशों के साथ इनका व्यापारिक संबंध था।
- यहां के निवासी वस्तु विनिमय द्वारा व्यापार करते थे।
- हड़प्पा संस्कृति व सभ्यता में तौल के बाट 16 अथवा इसके गुणज भार के थे (16 64 160 320)।
सिंधु घाटी सभ्यता में आयत की जाने वाली वस्तुएं
आयत की जाने स्थल
वाली वस्तु ।
- सोना कर्नाटक अफगानिस्तान फारस
- चांदी अफगानिस्तान पारस( ईरान)
- तांबा खेतड़ी राजस्थान बलूचिस्तान
- टिन मद्धेशिया अफगानिस्तान
- सीसा राजस्थान दक्षिणी भारत
- गोमेद सौराष्ट्र
- जुवमणि महाराष्ट्र
- फिरोजा ईरान अफगानिस्तान
- लाजवर्दमणि मोसोपोटामिया
- नीलरत्न बदख्शाँ
सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण उत्खनन स्थल,वर्ष,
निर्देशन
1.उत्खनन स्थल : हड़प्पा(मांतागोमरी जिला,पंजाब प्रांत पाकिस्तान)
वर्ष : 1921 ई,
निर्देशन : दयाराम सहानी
2.उत्खनन स्थल : मोहनजोदड़ो (सिंध का लडरकाना जिला, पाकिस्तान)
वर्ष : 1922 ई,
निर्देशन : राखल दास बनर्जी
3.उत्खनन स्थल : सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान पाकिस्तान)
वर्ष : 1927 ई,
निर्देशन : आरेल स्टाइन
4.उत्खनन स्थल : चन्हूदड़ो (सिंध पाकिस्तान )
वर्ष : 1931 ई,
निर्देशन : एमजी मजूमदार
5.उत्खनन स्थल:रंगपुर(अहमदाबाद,काठियावाड़ा,
भारत )
वर्ष : 1951 से 1953 ई,
निर्देशन : मोधोस्वरूप वत्स, बी.बी. लाल, एस.आर. राव
6, उत्खनन स्थल : कोटदीजी (सिंधु पाकिस्तान )
वर्ष : 1953 ई,
निर्देशन : फजल अहमद
7,उत्खनन स्थल : रोपड़ (पंजाब भारत )
वर्ष : 1953 ई,
निर्देशन : यज्ञदत्त शर्मा
8,उत्खनन स्थल : कालीबंगा(गंगानगर राजस्थान भारत)
वर्ष : 1961 ई,
निर्देशन : बी.बी.लाल
9,उत्खनन स्थल : लोथल (अहमदाबाद काठियावाड़ा भारत)
वर्ष : 1954 ई,
निर्देशन : एम.आर. राव
10,उत्खनन स्थल : आलमगीरपुर (मेरठ उत्तर प्रदेश भारत)
वर्ष : 1958 ई,
निर्देशन : यज्ञदत्त शर्मा
11, उत्खनन स्थल :सुरकोटड़ा (कच्छ गुजरात भारत )
वर्ष : 1972 ई,
निर्देशन : जगपति जोशी
12, उत्खनन स्थल : बनावली (सिहार हरियाणा भारत )
वर्ष : 1973 ई,
निर्देशन : आर.एस. बिष्ट
13,उत्खनन स्थल : धोलावीरा (कच्छ गुजरात भारत)
वर्ष : 1990 ई,
निर्देशन : आर.एस बिष्ट
हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता के समय में व्यापार शिल्प तथा उद्योग धंधे की विशेषता
कृषि तथा पशुपालन के अतिरिक्त यहां के निवासी शिल्पा तथा उद्योग धंधों में ही रुचि लेते थे यहां के निवासी धातु निर्माण उद्योग आभूषण निर्माण उद्योग बर्तन निर्माण उद्योग हथियार औजार निर्माण उद्योग एवं परिवहन उद्योग से परिचित थे
- खुदाई से प्राप्त कताई बुनाई के उपकरणों (तकली सुई आदि) से पता चलता है कि कपड़ा बुनना एक प्रमुख उद्योग था।
- चौक पर मिट्टी के बर्तन बनाना खिलौने बनाना मुद्राओं का निर्माण करना आभूषण एवं गुरियों का निर्माण करना आदि अन्य प्रमुख उद्योग धंधे थे
- लकड़ी की वस्तुओं से पता चलता है कि बढ़ाई गिरी का व्यवसाय भी होता था
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन की विशेषता
- सिंधु निवासियों का सामाजिक जीवन सुखी तथा सुविधा पूर्ण था एवं सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था।
- खुदाई से प्राप्त बहुसंख्यक नारी मूर्तियों से अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका परिवार मातृसत्तात्मक था।
- समाज व्यवसाय के आधार पर चार वर्गों में विभाजित था विद्वान योद्धा, व्यापारी,तथा शिल्पकार और श्रमिक,
- हड़प्पा हड़प्पा की खुदाई में अत्यंत विशाल तथा लघु मकान पास पास स्थित मिलते हैं। जो इस बात का प्रमाण है कि समाज में धनी निर्धन का भेदभाव नहीं था।
- सेंधव निवासी शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार के भोजन करते थे गेहूं व चावल तेल तथा दाल आदि उनके प्रमुख खाद्यान्न थे।
- सोने चांदी हाथी दांत तांबे एवं शिव से निर्मित आभूषण जैसे- कंठहार कर्णफूल हँसूली भुजबंद तथा कड़ा आदि का प्रचलन था जिन्हें स्त्री तथा पुरुष समान रूप से पहना करते थे।
- चलो निवासी आमोद प्रमोद के प्रेमी थे जुआ खेलना शिकार करना नाचना गाना बजाना आदि लोगों के आमोद प्रमोद के साधन थे पाशा इस युग का प्रमुख खेल था।
- मछली पकड़ना तथा चिड़ियों का शिकार करना नियमित क्रियाकलाप था।
- मिट्टी के अतिरिक्त सोने चांदी एवं तांबे से निर्मित बर्तनों का प्रयोग भी किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन की विशेषता
मातृ देवी के संप्रदाय का सेैन्धव संस्कृति में प्रमुख स्थान था मात्र देवी की ही भांति देवता की उपासना में भी बलि का विधान था। यहां पर पशुपतिनाथ महादेव लिंग योनि वृक्षों एवं पशुओं की पूजा की जाती थी। यह लोग भूत-प्रेत अंधविश्वास हुआ जादू टोना पर भी विश्वास करते थे।
- लोथल गुजरात और कालीबंगा राजस्थान के उत्खनन नो के परिणाम स्वरूप कई अग्निकुंड तथा अग्नि वेदिकाए मिली हैं।
- बेैल को पशुपतिनाथ का वाहन माना जाता था फाख्ता को एक पवित्र पक्षी माना जाता था।
- स्वास्तिक चिन्ह संभवत हड़प्पा सभ्यता की ही देन है।
- मृतकों के संस्कारों में तीन विधियां प्रचलित थी पूर्ण- समाधिकरण ,आंशिक समाधिकरण, दाह - संस्कार,।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की लेखन कला
की विशेषता
दुर्भाग्यवश अभी तक सिंधु सभ्यता की लिपि को पढ़ा नहीं जा सकता है।इसमें चित्र और अक्षर लगभग 400 अक्षर एवं 600 चित्र दोनों ही ज्ञात हुए हैं। यह लिपि प्रथम लाइन में दाएं से बाएं तथा द्वितीय लाइन में बाएं से दाएं लिखी गई है यह तरीका बाउस्ट्रोफिडन (BOUSTROPHEDON) कहलाता है।
हड़प्पा सभ्यता या संस्कृति के प्रमुख स्थल
हड़प्पा सभ्यता या संस्कृति की खोज आरंभिक चरणों में इनके अवशेष प्रमुख रूप से सिंधु नदी के तटीय क्षेत्रों में पाए गए थे। इस सभ्यता के क्षेत्र के विस्तार को देखते हुए इसके सर्वप्रथम ज्ञात स्थान हड़प्पा के नाम पर इसे हड़प्पा संस्कृति का गया। सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख स्थल निम्नानुसार है।
- हड़प्पा संस्कृति सिंध, बलूचिस्तान, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश के सीमांत प्रदेश काठियावाड़ा और इसके पूर्वी भागों में फैली थी।
- इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था।
- प्रोफेसर गार्डन चाइल्ड के अनुसार यह सभ्यता मिश्र से भीअधिक विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी।
- अब तक हड़प्पा संस्कृति के 1000 से ज्यादा स्थानों का पता लग चुका है।
- इस संस्कृति के प्रमुख केंद्रों में हड़प्पा,मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो ,रोपड़ व रंगपुर,लोथल,कालीबंगा,और संघोल है।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के महत्वपूर्ण प्रमाण या साक्ष्य
- डॉकयार्ड बंदरगाह का साक्ष्य: लोथल गुजरात (भोगवा नदी के किनारे)।
- काँसे की नर्तकी (देवदासी) की मूर्ति : मोहनजोदड़ो ।
- सूती कपड़े का साक्ष्य : मोहनजोदड़ो ।
- आर्यों के आक्रमण का साक्ष्य : मोहनजोदड़ो ।
- विशाल स्नानागार : मोहनजोदड़ो ।
- जहाज के निशान वाली मुहर : मोहनजोदड़ो।
- काँसे का पैमाना : मोहनजोदड़ो ।
- पशुपति शिव की प्रतिमा : मोहनजोदड़ो ।
- R- 37 कब्रिस्तान : हड़प्पा 3 कक्षा का कब्रिस्तान ।
- माता देवी प्रतिमा : हड़प्पा ।
- मनके बनाने का कारखाना : चन्हूदड़ो (सिन्ध )।
- लकड़ी की नाली : कालीबंगा ।
- काली मिट्टी की चूड़ियां : कालीबंगा ।
- जुते हुए खेत का साक्ष्य : कालीबंगा ।
- घोड़े का कंकाल : सुरकोटड़ा ।
- अग्नि वेदियाँ : लोथल व कालीबंगा ।
- चावल की खेती : लोथल ।
- गेहूं की खेती : रंगपुर ।
- जौ की खेती : बनावली।
हड़प्पा संस्कृति के निर्माता
हड़प्पा संस्कृति के निर्माता कौन है। यह एक विवादित विषय रहा है ।सिंधु घाटी में जिन मानव शरीर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।उनसे यह समस्या हल नहीं हुई है जिस तरह की मानव खोपड़ी में यहां से प्राप्त हुई हैं। इनके आधार पर संसार की सभी प्रजातियां आर्य,आग्नेय,द्रविड़,
भूमध्यसागरीय, किरात, का यहां अस्तित्व सिद्ध हो सकता है, एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र होने के कारण विभिन्न देशों के लोगों का यहां आना संभव हो सकता है, किंतु यहां के मूल निवासी कौन थे यह प्रश्न विवादित है ।यहां से प्राप्त अस्थि पंजरो का अध्ययन करने के पश्चात कर्नल स्युऊल तथा डॉक्टर गुहा ने यहां के निवासियों की 4 प्रजातियों को बताया है:
1. आदि ऑस्ट्रोलायड ।
2. मंगोलियन।
3. भूमध्यसागरीय।
4. अल्पाइन।
कुछ विद्वानों का मत है कि इस सभ्यता को भूमध्य- सागरीय प्रजाति के लोगों ने जिन्हें आई बीरियन कहा जाता है, सिंधु घाटी सभ्यता हड़प्पा सभ्यता को जन्म दिया है। कुछ विद्वानों ने द्रविड़ो को इस सभ्यता का जनक माना है। किंतु इस सभ्यता में उचित तथा पुष्ट प्रमाण नहीं मिलते हैं। वेदों और पौराणिक अनुसूचियों के अनुसार आर्यों को पश्चिमोत्तर भारत में असुर जाति से संघर्ष करना पड़ा था। जब आर्य मध्यप्रदेश से अपना प्रसार कर रहे थे ।आर्यों से पराजित होकर असुर जाति ईरान,अककांट,
सुमेर अरीड़िया,आदि बस गई यही असुर सिंधु सभ्यता के निर्माता थे।अन्य विद्वानों के अनुसार हड़प्पा संस्कृति
ऋगवैदिक सभ्यता की परवर्तनी थी।यह विद्वान आर्यों को सिंधु सभ्यता का जनक मानता है।इसके विरोध में यह कहा गया है कि सिंधु सभ्यता का प्रारंभिक खुदाई में श्वान एवं अश्व की हड्डियां नहीं मिली, किंतु बाद की खुदाई में इन पशुओं की हड्डियां प्राप्त होने से इस धारणा को बल मिलता है, कि यह सभ्यता आर्य असुर मिश्रित सभ्यता थी ।इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यह एक विवादित विषय है।