प्रागैतिहासिक काल | पाषाण काल | ताम्र पाषाण काल
नमस्कार दोस्तों मैं राजेंद्र ठाकुर एक बार फिर से gainknowlege.com पर आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं ,दोस्तों आज मेरे द्वारा इस आर्टिकल के माध्यम से मैं आपको ( MPPSC ) (MADHYA PRADESH PUBLIC SERVICE COMMISION )मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रारंभिक परीक्षा जिसे (MPPSC PRELIMS/ PRE EXAM) एमपीपीएससी प्रीलिम्स एग्जाम कहा जाता है, जिसमें प्रथम प्रश्न पत्र सामान्य अध्ययन ( General Studies) के पाठ्यक्रम (Syllabus ) में दिए गए महत्वपूर्ण विषय " मध्य प्रदेश के इतिहास की प्रमुख घटनाएं संस्कृति एवं साहित्य। (History Culture and literature of Madhya Pradesh) के अंतर्गत या संदर्भ में मध्य प्रदेश के इतिहास की प्रमुख घटनाएं प्रमुख राजवंश, ( Major Events and Major Dynasties in History of Madhya Pradesh) के टॉपिक पर महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी उपलब्ध करा रहा हूं ।यह जानकारी ( Mppsc Pre/Prelims Exam) के लिए महत्वपूर्ण एवं उपयोगी तो है लेकिन अन्य Entrance Exam प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए भी महत्वपूर्ण और उपयोगी है, जैसे MPPSC SSC UPSC MP POLICE /SI MP PATWARI EXAM .MP FOREST EXAM BANK EXAM etc. यह सामान्य ज्ञान (General )Knowledge की जानकारी आपके लिए उपयोगी एवं महत्वपूर्ण साबित होगी।
पाषाणकाल या ताम्रपाषाण काल या प्रागैतिहासिक काल
अवस्थाओं के निर्धारण के आधार पर भारत में मानव के अस्तित्व की पहचान को प्राप्त सूचनाओं के आधार पर 300000 ई.पू. से 200000 ई. पू. के बीच रखा गया है। सोन घाटी तथा दक्षिणी भारत में बहुतायत में पाए गए प्राचीनतम पत्थरों के औजारों के अध्ययन के आधार पर यह बात प्रमाणित की गई है। प्रागैतिहासिक युग में लगभग 10000 साल पहले मानव भारत में विकसित दशा में पाया जाता था ।इसके प्रमाण वे पाषाण उपकरण है, जो असम से लेकर कच्चे तथा कश्मीर और पंजाब से लेकर दक्षिणी में कावेरी नदी के डेल्टा से प्राप्त हुए हैं।
पुरापाषाण युग
लगभग 36000 ई.पू.आधुनिक मानव (होमो स्पेनिश) पहली बार अवतरित हुआ था।आदिम मानव 8000 ईसवी पूर्व तक पुरापाषाण युग में पत्थर के अनगढ तथा अपरिष्कृत औजारों का इस्तेमाल करता था।इस युग का मानव शिकार तथा खाद्य संग्रह पर अपनी जीविका चलाता था,और प्रकृति पर पूरी तरह निर्भर था। इस युग में मानव ने आग पर नियंत्रण करना सीख लिया था। इस युग को प्राचीनतम पत्थर का युग भी कहा जाता है। जिसमें सभ्यता की एक लंबी अवधि समाहित है। इस युग में वर्तमान मानव जाति के प्रथम पूर्वजों ने भारत उपमहाद्वीप में रहना शुरू किया था ।पुरापाषाण युग की अवधी है 300000 ई. पू. - 8000 ई. पू. तक की है।
पुरापाषाण युग को तीन अवस्थाओं में बांटा जाता है:
1.निम्न पुरापाषाण युग ।
2.मध्य पाषाण युग।
3.उत्तरी पाषाण युग ।
पुरापाषाण युग को तीन अवस्थाओं बांटा गया है, उसका आधार उस समय के मानव द्वारा प्रयोग किए जाने वाले पत्थरों के औजारों के स्वरूप पर आधारित है। पूर्व पाषाण काल में बिना बैंट के औजारों का ही उपयोग होता था जिसमें हस्त कुठार प्रमुख था।
मध्य पाषाण युग
करीब 8000 ई. पू. से मध्य पाषाण युग प्रारंभ हुआ, जो 4000 ई. पू. तक बना रहा।इस युग में तेज तथा नुकीले औजारों का प्रयोग तेज भागने वाले पशुओं को मारने के लिए किया जाता था ।छोटा नागपुर की पहाड़ी मध्य भारत तथा कृष्णा नदी के दक्षिण में कुछ मध्य पाषाण युगीन स्थल पाए गए हैं। पुरापाषाण युग के पश्चात मध्य पाषाण युग आया. जिसे उत्तरी प्रस्तर का युग भी कहते हैं, जो लगभग 8000 ई. पू. से लेकर 4000 ई. पू. तक का काल है। यह काल पुरापाषाण तथा नवपाषाण युग के बीच का संक्रमण काल है ।इस युग में पत्थरों के बहुत छोटे औजारों का उपयोग होता था।चंबल बेतवा नर्मदा नदियों की घाटियों में से ऐसे पाषाण काल मैं उपयोग होने वाले औजार अधिक मात्रा में मिले हैं ।
नवपाषाण युग
लगभग सभी नवपाषाण युगीन बस्तियां 4000 इ. पू. से अधिक पुरानी नहीं है ।इस युग में लोग जानवरों को पालतू बनाने लगे पेड़ पौधे लगाने लगे गांव में रहने लगे तथा उन्होंने सामुदायिक कृषि का विकास भी किया। पहिए का प्रयोग एक महत्वपूर्ण आविष्कार था ।इसी युग में पहिए का आविष्कार हुआ था। तीसरा युग नवपाषाण युग या नवीन प्रस्तर का युग है जो 4000 ई. पू. से 1800 ई. पू. के समय को समाहित करता है। और इसी इसकी पहचान पालिशदार पत्थरों के हजारों से प्राप्त होती है ।नवपाषाण युग भारत की तरह मध्यप्रदेश में भी लगभग 7000 ई. पू. के आसपास शुरू हुआ था।नवपाषाण काल युग में मनुष्य ने कृषि पशुपालन गृह निर्माण और अग्नि का प्रयोग किया था।नवपाषाण काल के प्रमाण हमें मिलते हैं- एरण गढी- मोरेला कुंडम चटकारा बाहुलई मुनई अर्तुजी जबलपुर दमोह नादगांव हटा होशंगाबाद।होशंगाबाद के निकट नर्मदा नदी के तट पर स्थित आदमगढ़ प्रागैतिहासिक मानव की क्रीड़ा स्थली का स्त्रोत रहा है। आदमगढ़ में गुफा शैल चित्र जो कि प्रागैतिहासिक काल के प्रमाण मिले हैं।
ताम्र पाषाण युग
नवपाषाण युग के अंत में तांबे से बने सामानों का प्रयोग प्रारंभ हो गया था ।इस युग को ताम्र पाषाण युग 1800 ई. पू. से 1000 ई. पू. तक कहते हैं. यह संस्कृति छोटा नागपुर की पहाड़ी से लेकर गंगा के दोआब तक फैली हुई थी ।कैलकोलिथिक या ताम्र पाषाण युग भी कहते हैं। सामान्यता 1800 ई. पू. से लेकर 800 ई. पू. तक का माना गया है। इस युग में पत्थर के अलावा तांबे का भी प्रयोग किया गया था ।इस युग में सबसे पहली बार भारत में पत्थर के अलावा तांबे का प्रयोग किया गया था।ताम्रपाषाण काल में मनुष्य पत्थरों के ही उपकरण और औजार बनाता था ।और उपयोग करता था ताम्र पाषाण काल में पत्थर पाषाण के साथ-साथ तांबा धातु का प्रयोग भी मानव करने लगा था। ताम्र पाषाण काल 2000 से 900 ई. पू. तक की अवधि तक का था।ताम्र पाषाण काल में मनुष्य पत्थर के साथ-साथ तांबा धातु का भी उपयोग करना शुरू कर दिया था।ताम्र पाषाण बस्ती कायथा यह उज्जैन जिले मैं छोटी सिंधु नदी तट पर उत्खनन के दौरान सामने आई। कायथा पहली ताम्र पाषाण बस्ती थी जिसका अस्तित्व 2015 ई. पू. से 1380 ई. पू. तक रहा था। कायथा से कंकण छेनी और कुल्हाड़ीया तांबा धातु से बनी हुई मिली है, और यहां से जो पशु आकृतियां प्राप्त हुई है ,वह भी तांबा और मिट्टी से बनी हुई प्राप्त हुई है।कायथा वराह मिहिर की जन्मभूमि है ।सागर जिले में स्थित एरण का प्राचीन नाम ऐरिकिण था ।एरण भी ताम्र पाषाण बस्ती थी, जो 2000 ई. पू. से 700 ई. पू. तक स्थित थी ।एरण एजेंट से तांबे की कुल्हाड़ी, सोने के गोल टुकड़े, मिट्टी से बनी पशुओं की आकृतियां,काले लाल मृदभांड चित्र, मृदभांड, ताम्र काली बस्ती के प्रमाण प्राप्त हुए हैं ।महेश्वर मैं नर्मदा के तट पर स्थित नवदाटोली ताम्र पाषाण काल के युग की है यह 1660 ई. पू. अस्तित्व में थी। यहां पर से झोपड़ी नुमा मिट्टी के घरों के साक्ष्य मिले हैं ,जो चोकोर गोल आयताकार के आकार के थे। चूल्हे, परिवहन की गाड़ी, काला लाल मृदभांड ,गेहूं ,चना, मटर, मसूर की खेती ,तांबे और पत्थर के औजार के साथ विदेशियों के प्रवास के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। मंदसौर जिले में स्थित आवरा ग्राम से ताम्र पाषाण से लेकर गुप्त काल तक की विभिन्न अवस्थाएं एवं संबंधित सामग्री प्राप्त हुई है। इस काल के निवासी चित्रित लाल काले सफेद रंग से रंगी हुई कुकरी हुई भांड का उपयोग करते थे।उज्जैन से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डॉगवाला ताम्र पाषाण बस्ती उत्खनन के दौरान सामने आई।उज्जैन जिले में चंबल नदी के तट पर नागदा स्थित है ।नागदा भी ताम्र पाषाणकाल बस्ती थी यहां से भी मृदभांड और लघु पाषाण के अस्त्र प्राप्त हुए ,खेड़ीनामा जो होशंगाबाद में स्थित है । यह अभी पाषाणकाल बस्ती थी यह 1500 ई. पू. तक अस्तित्व में थी।
प्रागैतिहासिक काल को दो भागों में बांटा जाता है 1.पाषाण काल
2. ताम्र पाषाण काल
1.पाषाणकाल:
मध्यप्रदेश में पाषाण काल के स्थल नर्मदा घाटी, चंबल घाटी, बेतवा घाटी, सोनार घाटी ,भीमबेटिका की गुफा आदमी पाए गए हैं ,तथा 2000 ई, पू. नर्मदा की सुरयम घाटी में सभ्यता विकसित हुई।इस काल मे लकड़ी के बेत वाले हस्त कुठार के अतिरिक्त खुरचनी .मुफ्ती कुठार तथा क्रोड मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों में पाए गए हैं।मृदभांड बनाना , झोपड़ी बनाकर रहना ,वस्त्रों का प्रयोग करना , मनुष्य ने उत्तरपाषण काल में सीख लिया था।उत्तर पाषाण काल को लघू औजार पाषाण काल भी कहते हैं ।नवपाषाण काल में मानव ने कृषि करना सीख लिया था।मानव पशु पक्षी तथा मछली को अपने भोजन में प्रयोग करता था ।
पाषाण काल के प्रमुख प्रागैतिहासिक स्थल एवं विशेषताएंh
चंबल, बेतवा, नर्मदा इत्यादि घाटी उसे बहुतायात औजार प्राप्त हुए हैं ,नवपाषाण युग मध्य प्रदेश में लगभग 7000 ईसवी पूर्व में प्रारंभ हुआ यहां से सेल्ट कुल्हाड़ी बसूला रजक घन जैसे औजार मिलें है । मनुष्य ने इसी काल में कृषि पशुपालन गृह निर्माण और अग्नि जैसे क्रांतिकारी कार्यों को आपनाया है ।
ऐरण ,गढी मोरेला,जतकरा , बाहुलई, बुसिगा मुंनई , जबलपुर , दमोह , नंदगाव , होशन्गबाद , इस युग के साथ प्राप्त करते हैं।
आजमगढ़:- यह मध्य पाषाण कालीन है यह होशंगाबाद के निकट नर्मदा तट पर स्थित है आजमगढ़ प्रागैतिहासिक मानव की क्रीड़ा स्थली रहा है गुफा शैल चित्र यहां की प्रमुख विशेषता है।
भीमबेटका :- प्रागैतिहासिक मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ चिन्ह विंध्य पर्वतों में स्थित भीमबेटका के से प्राप्त हुए हैं भीमबेटका में ऊंचे ऊंचे पत्थर के टीले के मध्य गुफाए निर्मित है।
2.ताम्र पाषाण काल
मध्यप्रदेश में बालाघाट एवं जबलपुर जिले के कुछ भागों में ताम्र कालीन औजार मिले हैं ! इनके अध्ययन से ज्ञात होता है कि वह समय देश के अन्य क्षेत्रों के समीप मध्य प्रदेश के कई भागों में इस सभ्यता का विकास हुआ ।यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के समकालीन थे ।मानव ने पत्थर के साथ तांबे का प्रयोग सीखा।नर्मदा चंबल बेतवा नदी के किनारे और जबलपुर बालाघाट में इस सभ्यता का विकास हुआ।मालवा के कायथा एरण .आवरा . नवदाटोली. डाँगवाला. बैसनगर से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं।डॉक्टर बी श्री वाकण कर ने नागदा काय था की खोज की।इस काल में पशुओं में गाय कुत्ता बकरी पाले जाते थे।घुमक्कड़ जीवन समाप्त. खेती, पशुपालन प्रारंभ हो गया था।
ताम्र पाषाण काल के प्रमुख प्रागैतिहासिक स्थल एवं उनकी विशेषताएं
कायथा :-यह पहली ताम्रपाषाण बस्ती थी जिसका अस्तित्व 1380 से पूर्व तक रहा कायदा वराह मिहिर की जन्मभूमि थी।
एरण :- यह सागर जिले में स्थित है इसका प्राचीन नाम ऐरिकिण था इस ताम्र वस्थी का समय 2000 ईसवी पूर्व से 700 ईसवी पूर्व माना जाता है जहां से तांबे की कुल्हाड़ियां सोने के गोल टुकड़े चित्र मृदभांड ताम्र कालीन बस्ती के प्रमाण आदि प्राप्त हुए ।
नवदाटोली :- यह महेश्वर में नर्मदा तट पर स्थित है इसका ताम्रपाषाण एक अस्तित्व 1637 ई.पूर्व के मध्य माना जाता है यहां से झोपड़ीनुमा मिट्टी के घरों के साक्ष्य मिले हैं जो चौकोर या आयताकार होते थे ।
आवरा:- मंदसौर जिले में स्थित आगरा ग्राम से ताम्रपाषाण से लेकर गुप्त काल तक की विभिन्न अवस्थाएं एवं संबंधित सामग्री मिली है ।
डांगवाला :- यह उज्जैन से 32 किलोमीटर दूर बस्ती में स्थित है यह गत शताब्दी के उत्खनन से अस्तित्व में आई
नागदा:- यह उज्जैन जिले में चंबल नदी के तट पर है। इस ताम्रपाषाण बस्ती से भी मृदभांड और लघु पाषान के अस्त्र आदि मिले हैं।
खेड़ीनामा :- यह होशंगाबाद जिले में स्थित है 1500 पूर्व पुरानी ताम्रपाषाण बस्ती।
मध्यप्रदेश के विभिन्न भागों में किए गए उत्खनन और खोजो मे प्रागैतिहासिक काल सभ्यता के चिन्ह मिले हैं! आदिम प्रजाति नदियों के किनारे और गुफाओं में रहती थी ।मध्यप्रदेश के भोपाल. रायसेन .धनेरा .नेमावर .मोजावाडी .महेश्वर .देवगांव बरखेड़ा . सिंघनपुर. आजमगढ़ .पचमढ़ी. होशंगाबाद .मंदसौर तथा सागर के अनेक स्थानों पर इनके रहने के प्रमाण मिले हैं । इस काल के मानव ने अपनी कलात्मक अभिरुचियों की भी अभिव्यक्ति की है।होशंगाबाद के निकट गुफाओं भोपाल के निकट भीमबेटिका की कंदराओं तथा सागर के निकट पहाड़ियों से प्राप्त शैलचित्र इसके प्रमाण हैं।
पाषाण काल 40 लाख ईवी पूर्व से 4000 ईवी पूर्व तक की अवधि का था।होशंगाबाद के निकट नर्मदा नदी के तट पर स्थित आदमगढ़ प्रागैतिहासिक मानव की क्रीड़ा स्थली का स्त्रोत रहा है। आदमगढ़ में गुफा शैल चित्र जो कि प्रागैतिहासिक काल के प्रमाण मिले हैं। प्रागैतिहासिक काल के प्रमाण हमें भोपाल से 40 किलोमीटर दूर विंध्य पर्वतों में स्थित भीम बेटका के शैल चित्र हैं। भीम बेटिका में ऊंचे ऊंचे पत्थरों के तिलों के मध्य में गुफाएं निर्मित हैं। जिनकी संख्या 500 के आसपास हैं।भारत मैं जितने भी शैल चित्र गुहा चित्र प्राप्त हुए हैं। उनमें मध्यप्रदेश में सबसे अधिक संख्या में शैल चित्र प्राप्त हुए हैं।प्रागैतिहासिक काल के प्रमाण हमें निम्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं, होशंगाबाद सागर रीवा मंदसौर जबलपुर रायगढ़ सीहोर रायसेन ग्वालियर पूर्व निमाड़ शिवपुरी छिंदवाड़ा छतरपुर दमोह पन्ना और नरसिंहपुर जिले में चित्रित शैल चित्र प्राप्त हुए हैं।
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राजेंद्र ठाकुर