मध्य प्रदेश के इतिहास के प्रमुख और महत्वपूर्ण राजवंश की जानकारी सारांश में
नमस्कार दोस्तों मैं राजेंद्र ठाकुर एक बार फिर से gainknowlege.com पर आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं दोस्तों आज मेरे द्वारा इस आर्टिकल के माध्यम से मैं आपको इतिहास से संबंधित विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में जो प्रश्न पूछे जाएंगे!उसमे प्रमुख टॉपिक है , "मध्य प्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं ,प्रमुख राजवंश"(Major Events and Major Dynasties in History of Madhya Pradesh) इस महत्वपूर्ण टॉपिक पर में आपके लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी जानकारी उपलब्ध करा रहा हूं ।यह जानकारी ( Mppsc Pre/Prelims Exam) के लिए महत्वपूर्ण एवं उपयोगी तो है लेकिन अन्य (Entrance Exam) प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए भी महत्वपूर्ण और उपयोगी है जैसे -MPPSC MPTET, SSC UPSC MP POLICE /SI MP PATWARI EXAM .MP FOREST EXAM BANK EXAM.RAILWAY EXAM.. etc. यह सामान्य ज्ञान (General )Knowledge की जानकारी आपके लिए उपयोगी एवं महत्वपूर्ण साबित होगी
1.कारुष वंश
महाभारत और पुराणों में वर्णित अनुश्रुतियो के अनुसार मनुष्यों की परंपरा में अंतिम मनु वैवस्वत जिनके समय विश्व व्यापक बाढ़ आई थी ।मनु वैवस्वत के 10 पुत्र थे। जिनके नाम हैं- इल, इक्ष्वाकु , नाभाग, घृष्ट ,shyaarti. नरिषयंत ,प्राशुं ,नाभागोदिष्ट , कारूष और प्रषाध्र । इनमें से कारूस नाम के पुत्र से कारूसू वंश चला और कारूस देश (वर्तमान बघेलखंड ) की स्थापना हुई
- यह कारूस देश वर्तमान में बघेलखंड में स्थित था ।
- कारूस देश वर्तमान म.प्र में रीवा के पास बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
2.चंद्र वंश (ऐल साम्राज्य)
मनुष्यों की परंपरा में अंतिम मनु वैवस्वत की पुत्री इला का विवाह सोम / चंद्र से हुआ था। इनके राज्य या साम्राज्य का नाम ऐल सामाराज्य हुआ ।
- चंद्र द्वारा एल साम्राज्य की स्थापना की गई ,जिसका आदि पुरुष पुरुरवा था।
- पुरुरवा के अधीन एल साम्राज्य का विस्तार हुआ।
- सौम् या चंद्र वंश के साम्राज्य का विस्तार बुंदेलखंड तक था ।
- पुरुरवा के 2 पुत्र थे आयु और अमावसु।
3.ययाति और एल राज्य का विभाजन
राजा आयू की तीसरी पीढ़ी में चंद्रवंशी ययाति का जन्म हुआ चंद्रवंशी ययाति राजा आयु का पुत्र था। चंद्रवंशी ययाति का विवाह देवयानी शुक्र भार्गव ऋषि की कन्या से विवाह किया ।ययाति ने वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से भी विवाह किया था। देवयानी से उसके दो पुत्र हुए, यदु और तुर्वशु। शर्मिष्ठा से 3 पुत्र हुए अनु, दत्ता, पूरु,।यदु से यादव वंश की स्थापना हुई और पूर्व से पौरव वंश की स्थापना हुई।
- ययाति ने अपना एल साम्राज्य पांच पुत्रों में बांट दिया ।
- इस विभाजन में यदु को जर्मणवती चंबल का घाटी क्षेत्र प्राप्त हुआ।
- विभाजन वेत्रवती को बेतवा का घाटी क्षेत्र प्राप्त हुआ ।
- और विभाजन मे शुक्तिमति को केन का घाटी क्षेत्र प्राप्त हुआ ,और उनके नाम पर यदु या यादव वंश की स्थापना हुई।
4.इक्ष्वाकु वंश और दंडकारण्य राज्य -
मनु वैवस्वत के एक पुत्र के द्वारा इक्ष्वाकु वंश की स्थापना की गई ।इक्ष्वाकु के पुत्र दंडक ने दंडकारण्य बस्तर राज्य को स्थापित किया।दंडक का राज्य मध्य प्रदेश के दक्षिण क्षेत्र पर था जो घने जंगलों से घिरा हुआ था ।उसी के नाम से यह क्षेत्र दंडकारण्य कहलाया।
5.मांधाता चक्रवर्ती सम्राट
इक्ष्वाकु वंश का प्रतापी राजा मांधाता था। मांधाता एक चक्रवर्ती सम्राट बना था । इसके 1 पुत्र पूरूकुॄत्सु ने मध्य भारत के नाग राजाओं को गंधर्व के खिलाफ सहायता दी थी।एलवंश की राजकुमारी इंदुमती से उसके 3 पुत्र पूरूकुॄत्सु अबंरीष, मुचुकुंद और एक पूत्री कावेरी हुई।प्रतापी राजा मांधाता ने अपने पुत्र पुरुकुत्स को मध्य भारत के नाग राजाऔ की सहायता हेतु भेजा (गंधर्व के विरुद्ध)।
- पूरूकुॄत्सु ने मध्यप्रदेश में मध्य भारत क्षेत्र में नाग राजाओं को मोनेय गंधर्व के विरुद्ध सहायता देकर विजय बनाया ।तथा नाग राजा की कन्या नर्मदा से विवाह किया।
- उसके भाई मुचुकुंद ने पारीयात्रा और ऋष पर्वत के प्रदेशों को जीतकर नर्मदा के किनारे एक दुर्ग का निर्माण किया था।
- इस वंश के मुचुकुंद ने पारीयात्रा की पर्वतमालाओं के बीच नर्मदा नदी के तट पर पूर्वज मांधाता के नाम पर मांधाता ओंकारेश्वर नगरी बसाई।
6.हैहय साम्राज्य -
यादव वंश के संस्थापक यदु के पुत्र हैहय के नाम पर स्थापित हैहय राज्य के राजा महिष्मंत ने 1 जीते गए दुर्ग का नाम महिष्मति (महेश्वर ) रखा । यदु या यादव वंश के वंशज कृतवीर्य ने हैहय वंश के विशाल साम्राज्य को स्थापित किया।
- हैहय वंश के राजा महिष्मंत ने मुचुकुंद को पराजित कर पारीयात्रा और ऋष पर्वत के प्रदेशों को अपने अधीनस्थ कर लिया।
- और मुचुकुंद द्वारा नर्मदा किनारे बनाए गए दुर्ग नगर गढ़ का नाम राजा महिष्मंत ने महिष्मति (वर्तमान में महेश्वर ) रखा।
7.सहस्त्रार्जुन -
हैहय वंश में ही कर्तविय या अर्जुन या सहस्त्रार्जुन सहस्त्रबाहु नामक महान सम्राट हुआ
जिसकी हजार भुजाएं मानी गई उसने समस्त पृथ्वी को जीता, और अनेक यज्ञ किए उसने लंका के राजा रावण को भी हराया था।
8.राजा अवंती
अर्जुन के पुत्र जयध्वज ने अवंती (मालवा ) पर राज्य किया। अवंती नाम जयध्वज के पुत्र अवंती ,नामक राजा के नाम पर बाद में पड़ा। अवंती ने ही यादवों को विदिशा से भगाया था ।
रामायण और महाभारत महाकाव्य में मध्य प्रदेश के विभिन्न राज्यों के क्षेत्रों और उनकी भूमिका का वर्णन हुआ है।रामायण काल में प्राचीन मध्य प्रदेश के अंतर्गत दंडकारण्य महाकांतर के घने वन क्षेत्र क्षेत्र विंध्य सतपुड़ा के अलावा यमुना के कोठे का दक्षिणी भाग और गुर्जर प्रदेश के कई क्षेत्र थे यदुवंशी नरेश मधु इस क्षेत्र के सासक थे। जो अयोध्या के राजा दशरथ के समकालीन थे।माता सीता के पुत्र कुश ने दक्षिण कौशल छत्तीसगढ़ पर राज्य किया ।जबकि शत्रुघ्न के पुत्र शंभघाटी ने विदिशा पर शासन किया।प्राचीन काल के प्राचीन नगरों के नवीन नाम
- विराट पुरी - सुहागपुर
- महिष्मति - महेश्वर
- इंद्रपुट ( इंद्रप्रस्थ ) - इंदौर
- कुंतलपुर - किंडिया
- उज्जैनी - उज्जैन
- भोजताल - भोपाल
- धारा नगरी - धार
- मथा ( भरहुत ) - रीवा
- अंचहरा - सतना
10.महाभारत कालीन द्वापर युग
प्राचीन काल मैं महाभारत कालीन द्वापर युग की महत्वपूर्ण घटना थी महाभारत युद्ध
11.महाजनपद युग
वैदिक काल के अंतिम समय अर्थात 600 ई. पू. के लगभग भारत में 16 महाजनपद थे इस काल को महाजनपद काल कहा जाता है महाजनपद काल में 2 महाजनपद - चेदि( बुंदेलखंड )और अवंती (उज्जैन) जो कि वर्तमान में मध्यप्रदेश के क्षेत्र अंतर्गत थे।
1.चेदी जनपद
वर्तमान बुंदेलखंड क्षेत्र के पूर्व में विस्तारित था इसकी राजधानी शक्तिमती थी ।इसकी एक शाखा कलिंग में स्थापित हुई थी। खारवेल यहां का प्रसिद्ध शासक हुआ। चेदि वंश के राजा शिशुपाल का महाभारत में वर्णन हुआ है। इसका सिर कृष्ण ने अपने चक्र से काटा था। चेदि बाद में कमजोर पड़ा और मगध ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया था।
2.अवंती ।
मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में एक सशक्त महाजनपद था ।इसके 2 भाग से उत्तरी अवंति जनपद, दक्षिणी अवंती जनपद ,उत्तरी अवंति जनपद की राजधानी उज्जयिनी थी। तथा दक्षिणी अवंती जनपद जिसकी राजधानी महिष्मति वर्तमान महेश्वर थी ।इन दोनों जनपदों को बेतवा नदी प्रथक करती हुए प्रवाहित होती थी ।
- अवंति का शासक चंड प्रधोत अपनी वीरता के लिए प्रसिद्ध था।
- प्रधोत हाथी पालन कला का विशेषज्ञ भी था ।
- बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध के दूसरे राजा अजातशत्रु ने प्रदोत के आक्रमण से सुरक्षा के लिए पाटलिपुत्र दुर्ग बनवाया था ।
- मगध में शिशुनाग वंश के संस्थापक शिशुनाग ने अवंती को अनंत मगध में मिला लिया उस समय यहां का शासक नंदी वर्धन था ।
- अवंती बौद्धों का प्रसिद्ध केंद्र बन गया था।
त्योंथर- रीवा बौद्ध कालीन स्तूप के खंडहर यहां से प्राप्त हुए हैं
12.नंद वंश
मगध में नंदवंशी राजा महापद्मनंद ने साम्राज्य का विस्तार किया अपनी नीति के तहत चेदी को मगध राज्य में मिला लिया था। बड़वानी से नंद वंश की मुद्राएं प्राप्त हुई है।
13.मौर्य वंश युग
मौर्य के समय भी अवंती चेदि मगध के भाग बना था सम्राट बिंदुसार ने अपने पुत्र अशोक को अवंति का प्रांत- पति बनाया गया था, जिसने विदिशा की श्री देवी या महादेवी, वैश्य की बेटी से विवाह किया। जिससे महेंद्र और संघमित्रा पुत्र- पुत्री प्राप्त हुए थे।
- सम्राट अशोक ने सम्राट बनने के उपरांत सांची के प्रसिद्ध स्तूप का निर्माण कराया था।
- महादेवी के लिए भी एक स्तूप उज्जैन में अशोक ने बनवाया था ,जिसे आज वैश्य टेकरी के नाम से जाना जाता है।
- अशोक के लघु शिलालेख मध्यप्रदेश रूपनाथ गुर्जरा सारो माटो ( सिहोर ) पानगुराडिया सीहोर सांची में मिलते हैं।
- सांची के स्तूप के पास ही अशोक का एक शिलालेख उत्कीर्ण हैं।
- रूपनाथ (जबलपुर )और गुर्जरा (दतिया)में भी अशोक के शिलालेख मिले हैं।
- गुर्जरा लेख में तो अशोक का नाम भी है।
- मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में मौर्य सत्ता के व्यापक साक्ष्य मिले हैं ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार अशोक ने बौद्ध धर्म (Buddhism) के प्रचार हेतु सांची के स्तूप का निर्माण कराया था।
- मौर्य युग में व्यापारिक मार्गो ( Trading routes) की संख्या 4 थी जिनमें तीसरा मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से उत्तर में श्रावस्ती तक जाता था जिसमें माहिष्मती उज्जैन दीदी शादी नगर स्थित है।
- जबकि छोटा प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग जरूरत से मथुरा तक जाता था जिसके रास्ते में उज्जैनी पढ़ता था ।उस समय व्यापार के ऊपर राज्य का नियंत्रण होता था ।
- मौर्य युग में सोने के सिक्के चांदी तांबा छोटे सिक्के का चलन था और आहत के सिक्के भी मिले हैं।
- गुर्जरा और सिहोर अभिलेख में अशोक के नाम का उल्लेख मिलता है।
- चंद्रगुप्त ने भारत को यूनानी दासता से मुक्त कराकर सिंध पंजाब और मगध को अपने अधीन कर लिया।
- चंद्रगुप्त का पुत्र बिंदुसार था। जिसका पुत्र अशोक अवंतिका उप राजा था। जो बाद में मगध का शासक बना व देवानामप्रिय की उपाधि प्राप्त की।
- अशोक के काल में तृतीय बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र में हुई जिसकी अध्यक्षता में मोगलीपुत्र नामक बौद्ध भिक्षु ने की।
- बेसन नगर विदिशा प्राचीन जैन तथा ब्राह्मण ग्रंथ में विदिशा का नाम बेसन नगर मिलता है।
- सन 1913 से 1914 में श्री डी आर भंडारकर ने यहां उत्खनन करवाया ।उत्खनन के दौरान बेसन नगर में हेलिओडोरस का स्तंभ प्राप्त हुआ है ।जो वैष्णव धर्म से संबंधित है। यहां मौर्य कालीन सभ्यता के प्रमाण भी मिल चुके हैं।
- बेसन नगर गुप्त शासकों के समकालीन माना गया है।
- मौर्योत्तर योग 200 ई. पू. से 150 ई.
- नगरी युग मौर्य के समय अनेक नगर विकसित हुए थे। इनमें एरण त्रिपुरी महिष्मति भाग्य विदिशा अवंती एवं पद्मावती प्रमुख हैं ।
- इस समय के आहत सिक्के पंच मार्ग हमें प्राप्त हुए हैंइन सिक्कों पर ब्राह्मी लिपि में लेख लिखे हुए हैं।
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14.शुंग राज्यवंश काल (187 से 75 ई. पू. )
मौर्यो के बाद शुंग वंश ने मगध पर राज किया। इसकी स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य राजा वृहदथ की हत्या करके की। उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का प्रांतपति था ।मालविका के साथ उसके प्रेम प्रसंग को आधार बनाकर कालिदास ने अपनी पहली रचना मालविकाग्निमित्रम् लिखी ।मालविकाग्निमित्रम् के अनुसार अग्निमित्र ने विदर्भ के यज्ञसेन को हराया था । भागभद्रक के दरबार में यूनानी राजदूत हेलिओडोरस आया था। जिसने विदिशा बेसन नगर में प्रसिद्ध गरुड़ स्तंभ खानबाबा उत्तकीर्ण करवाया था। और अपने को परम भागवत घोषित किया। अग्निमित्र के समय ही सांची स्तूप के आसपास परिक्रमा स्थल जंगला निर्मित किया गया था।
- सुंग वंश की स्थापना 185 ई.पू. के आसपास अंतिम मौर्य शासक ब्रहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या करके की थी ।
- पुष्यमित्र शुंग का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का शासक था।
- शुंग वंश के पांचवें शासक भागभ्द्र के समय में यवन राजपूत हेलियोडोरस ने विदिशा में भागवत धर्म से प्रभावित होकर गरुड़ध्वज की स्थापना कराई थी ।
- सुंग वंशीय राजाओं द्वारा भरहुत के स्तूप बनवाने के साक्ष्य भी मिले हैं।
- इस राजवंश की स्थापना मौर्यवंश के अंतिम शासक के ब्राह्मण सेनापति “पुष्यमित्र शुंग” ने की थी|
- “महाभाष्य” के लेखक ‘पतंजलि’ का जन्म मध्य भारत में “गोनार्दा” नामक स्थान पर हुआ था| पुष्यमित्र शुंग द्वारा किए गए 2 यज्ञों के पुरोहित पतंजलि थे|
- भरहुत स्तूप शुंग कालीन सबसे प्रसिद्ध स्मारक है|
- शुंग कालीन कला: भज (पुणे) का विहार, चैत्य और स्तूप, अमरावती का स्तूप और नासिक का चैत्य
15.सातवाहन वंश ( 50 ई,पू से 300 ई, )
दक्षिण भारतीय शक्ति सातवाहनों ने काणवो का अंत किया, लेकिन वे उत्तर के बजाय दक्षिण महाराष्ट्र केंद्र से ही शासन करते रहे। इसके पराक्रमी राजा शातकरणी की पूर्वी मालवा विजय का उल्लेख सांची में उत्कीर्ण एक लेख से होता है। उसके यहां मिले सिक्को पर सिरिशात (शातकरणी) उत्कीर्ण हैं। सबसे महान सातवाहन राजा गौतमीपुत्र 106 ई पू से 130 ई,पू के सिक्के अधिक संख्या में उज्जैन आदि से मिले हैं। उसके समय शक -सातवाहन संघर्ष हुआ और शंकों को उसने करारी शिकस्त दी। उसने शक राजा नहपान (नासिक ) को हराकर उसके सिक्कों पर अपना नाम मुद्रित करवाया था । उसके पुत्र वाशिष्ठपुत्र पुलुमावि ने भी मध्यभारत के बड़े भाग को अपने अधीन रखा लेकिन उज्जैन के शक क्षत्रप रुद्रदामन ने उसे जबरदस्त शिकस्त दी अनंत दोनों में वैवाहिक संबंध हुए और पुलमावि को उसका राज्य वापस मिला।
- अंतिम सातवाहन राजा यज्ञश्री शातकर्णि के सिक्के विदिशा देवास तेवर त्रिपुरी आदि से प्राप्त हुए हैं।
- इस राजवंश की स्थापना “सिमूक” (60-37 ई.पू.) ने की थी|
- सातवाहन राजवंश के शासनकाल में उत्तर-पश्चिमी दक्कन या महाराष्ट्र में चट्टानों को काटकर कई चैत्यों (पूजाघर) और विहारों (मठों) का निर्माण किया गया था जिनमें नासिक, कन्हेरी और कार्ले के चैत्य और विहार प्रसिद्ध हैं|
16.कुषाण राज्यवंश
कुषाणों का प्रभाव मध्यप्रदेश में मात्रा आक्रमण या कतिपय सांस्कृतिक गतिविधियों के रूप में कभी-कभी आया।इन्हें “येची” या “तोचारियन” भी कहा जाता है और ये लोग “स्टेपी घास के मैदानों” में रहनेवाले खानाबदोश लोग थे|कुषाण राजवंश का सबसे महान राजा “कनिष्क” था जिसने 78 ईस्वी में “शक संवत” की शुरूआत की थी|सबसे प्रतापी राजा कनिष्क थे।राजा कनिष्क के सिक्के शहडोल से मिले हैं। वसिष्क नामक राजा के सांची अभिलेख अनुसार उसके समय दुहिता मधुकरी ने एक बौद्ध प्रतिमा का निर्माण कराया था। उसके उत्तराधिकारी के सिक्के शहडोल और हरदा से प्राप्त हुए हैं ।
- कुषाण राजा वासुदेव के सिक्के तेवर जबलपुर से प्राप्त हुए हैं ।
- भेड़ाघाट से कुषाण कालीन दो मूर्ति लेख और बौद्ध प्रतिमाएं प्राप्त हुई है।
- कनिष्क के दरबार में पार्श्व, वसुमित्र, अश्वघोष, नागार्जुन, चरक (चिकित्सक) और माथर जैसे विद्वानों को संरक्षण प्राप्त था|
17.मालवा जाति राजवंश,
200 से 300 ए.डी सिकंदर पर आक्रमण से प्रकाश में आई मालवा जाती कालांतर में मालवा में आकर बस गई थी ।यही उसने शासन स्थापित किया संभवत मालवा जाति के नाम पर ही मालवा नाम पड़ा है।
18.नागवंश
मथुरा के नाग वंश की एक शाखा ने मध्यप्रदेश में शासन
स्थापित किया था इसके संस्थापक वृषनाथ का सिक्का
विदिशा स से प्राप्त हुआ है ।व्रषनाथ की राजधानी विदिशा थी। जिसे भीमनाग पद्मावती ले गया था। समुद्रगुप्त को अपने अंतिम नागराजा गणपति नाग को परास्त कर उसका राज्य गुप्त साम्राज्य में मिला लिया था। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने मथुरा के नागवंश की राजकुमारी कुबेर नागा से विवाह किया था।
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19.बौधि वंश (जबलपूर)
त्रिपुरी टीवर जबलपुर से बौधि वंश के चार प्रमुख शासकों के सिक्के प्राप्त हुए हैं चार प्रमुख शासक निम्नलिखित हैं श्री बौधि ,वसुबौधि,चंद्रबौधी, और शिवबौधि,
20.मघवंश बघेलखंड
बघेलखंड से मघ वंश के राजाओं के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इनमें भीमसेन, भद्रमघ ,शिवमघ,उल्लेखनीय और प्रमुख हैं। इन्होंने कुषाणों से सफल संघर्ष किया था।
21.गुप्त वंश
गुप्तों के समय एक बार फिर भारत का राजनीतिक एकीकरण हुआ था मध्यप्रदेश में उनके प्रतापी राजाओं की उपस्थिति और अभियान इस क्षेत्र के राजनीतिक महत्व को स्थापित करती है ।गुप्तों का पाटलिपुत्र में उदय हो रहा था। तब मध्यप्रदेश में अनेक क्षेत्रीय शक्तियां थी जैसे पश्चिमी मध्य प्रदेश में शक एक अत्यंत मजबूत राज्य था ।मध्य प्रदेश में आभीर ,नागवंश जैसे राज्य भी शक्तिशाली थे। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार वहां मध्य प्रदेश के जंगलों से होकर दक्षिण विजय की ओर बढ़ रहा था। उसने आर्यावर्त के जिन 9 राज्यों को जीता था ।उसमें नागवंशी भी थे। जिनके राज्य का कुछ भाग उत्तर पश्चिम मध्य प्रदेश में पढ़ता था ।उसकी अधीनता स्वीकार ने वाले 9 गणराज्यों में आभीर, सनकानिक ,खरपारीक के राज्य मध्य प्रदेश में विदिशा झांसी दमोह के आसपास केंद्रित थे।
- ऐरण सागर समुद्रगुप्त का स्वभाव नगर बन गया था ।
- समुद्रगुप्त शक राज्य को छोड़कर शेष मध्य प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर चुका था।
- उसके सिक्के मध्य प्रदेश से प्राप्त हुए हैं ।
- कांच नामक सिक्के भी गुप्तों की अधिपत्यता की पुष्टि करता है। जो विदिशा से प्राप्त हुए हैं।
- चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शक राज्य (उज्जैनी के कार्दमक वंश) का अंत कर लगभग संपूर्ण मध्यप्रदेश को अपने अधीन कर लिया था। उसकी शक विजय देवीचंद्रगुप्तम से और उसकी शकारी उपाधि से पता चलती है ।
- सांची अभिलेख में भी उसके एक दीर्घकालीन अभियान की पुष्टि करता है।
- देवीचंद्रगुप्तम के अनुसार रामगुप्त नामक गुप्त राजा ने शक राजा से परास्त होकर अपनी पत्नी ध्रुव देवी को उसे सोपना शिकार कर लिया था ।
- लेकिन उसके स्वाभिमानी भाई चंद्रगुप्त ने शक राजा को मारकर ध्रुवस्वामिनी को मुक्ति दिलाई और रामगुप्त का वध कर गुप्त साम्राज्य बना ।
- चंद्रगुप्त ने उज्जैनी को अपने दूसरी राजधानी बनाया और यहीं से उस के दरबार में नवरत्न होते थे ।
- उसके उत्तराधिकारी कुमारगुप्त की मंदसौर प्रशस्ति के अनुसार उसके समांत बंधुवर्मा ने सूर्य मंदिर को दान दिया था ।
- स्कंदगुप्त के समय हुण आक्रमण का फायदा उठाकर वाकाटकों ने मालवा पर अधिकार कर लिया था ।लेकिन स्कंद गुप्त ने उसे पुनः छीन लिया था।
- एक उत्तर कालीन गुप्त राजा भानुगुप्त गुप्त साम्राज्य पर शासन करता दिखाई देता है। जब उसने हुणों को परास्त कर दिया था ।इस युद्ध में उसका सैनिक गोपीराज मारा गया था जिसकी विधवा के सती होने का जिक्र एरण अभिलेख में है।
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22.हूण वंश
मूलता चीन की खूंखार जनजाति हुण का प्रमाणिक पहला आक्रमण स्कंद गुप्त के समय 459 ईसवी में माना जाता है स्कंद गुप्त ने इन्हें इतनी बुरी तरह से परास्त किया था कि 50 वर्षों तक भारत पर आक्रमण नहीं कर पाए।
- 5वी सदी के अंत में तोरमाण के नेतृत्व में पुनः हुण आक्रमण हुए।
- मध्यप्रदेश में ऐरण ( सागर जिला) का वाराह मूर्ति अभिलेख तोरमाण की उपस्थिति को दर्शाता हे।
- यहां से उसकी महाराजाधिराज की उपाधि वाले तांबे का सिक्का भी प्राप्त हुआ है ।
- उसके पुत्र मिहिरकुल के साम्राज्य में पश्चिमी मालवा शामिल था। ग्वालियार अभिलेख से उसकी पुष्टि होती है।
23,वाकाटक वंश
विंध्य शक्ति द्वारा स्थापित वाकाटक राज्य मूलत मध्य प्रदेश का राजवंश था ।जो बाद में नर्मदा के दक्षिण में केंद्रित हो गया था ।उसके पुत्र प्रवरसेन ने अश्वमेध यज्ञ किया था और नाग वंश से वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे उसके चार पुत्रों ने यह साम्राज्य बांट लिया था लेकिन इसकी कुल 2 शाखाएं राज्य करती हुई दिखाई देती थी।
1. नंदीवर्धन शाखा या पूरीक शाखा जो नागपुर के निकट स्थित थी इसका संस्थापक रूद्रसेन प्रथम था इसके एक उत्तराधिकारी नरेंद्रसेन ने हुण आक्रमण का लाभ उठाकर गुप्तों से मालवा छीन लिया था।
2.वत्स गुल्म शाखा सर्व सेन ने इस वाकाटक शाखा की स्थापना की अनंत हरि सेन ने इन दोनों शाखाओं को पुनः एकीकृत कर दिया था।
24.क्षहरात वंश
भूमक और नहापान नामक दो प्रसिद्ध राजा क्षहरात वंश में हुए थे । नहपान का संघर्ष गौतमीपूर्ण शातकर्णि से हुआ था। और नहपान मारा गया था। नहपान इसके पूर्व मध्य प्रदेश के कई क्षेत्रों पर अधिकार कर चुका था।
- जुगलथुम्बी से नहपान के पूर्ण मुद्रित सिक्के प्राप्त हुए हैं
- शिवपुरी से भी नहपान के ढलवाए सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन्हें सातकर्णि ने पूर्ण मुद्रित करवाया था।
25.कार्दमक वंश
यशोमती और उसके पुत्र चष्टन द्वारा स्थापित उज्जैन का शक राज्य कार्दमक वंशीय था। इसका प्रसिद्ध राजा रुद्रदामन संस्कृत का महान पंडित था ।उसके गिरनार स्थिति संस्कृत अभिलेख अनुसार सौराष्ट्रों में सुदर्शन नटक का पुनर्निर्माण रुद्रदामन ने करवाया था। उन्हें ही सर्वप्रथम तिथी युक्त चांदी के सिक्के मध्यप्रदेश में चलाए थे। रूद्रसिंह तृतीय ने सिर्फ उज्जैन का अपितु संपूर्ण शंकों में अंतिम था ।उसे मारकर चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने उज्जैन का विलय गुप्त साम्राज्य में कर लिया था। और उसके साथ भारत से शक सत्ता समाप्त हो गई थी।
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26.इंडो यूनानी काल ( 200 ई. पू. - 50 ई. पू.)/इंडो-ग्रीक शासकों में मिनान्डर (165-145 ई.पू.)
इंडो-ग्रीक शासकों में सबसे प्रसिद्ध शासक“मिनान्डर” (165-145 ई.पू.) था जिसे “मिलिन्द” के नाम से भी जाना जाता है|ग्रीक शासकों ने भारत में यूनानी कला की शुरूआत की थी|
- भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के ग्रीक शासकों ने जारी किया था|
- ग्रीक शासकों ने भारत में यूनानी कला की शुरूआत की थी|
- मौर्यो के उपरांत पश्चिम भारत में यूनानीयों ने अपने राज्य स्थापित किए इनमें डिमेट्रियस वंश के राजा “मिनान्डर” (मिलिंद)का नाम उल्लेखनीय हैं ।
- स्यालकोट को राजधानी बनाकर “मिनान्डर”(मिलिंद)ने विशाल साम्राज्य स्थापित किया उसे नागसेन बौद्ध बनाया।
- पाली ग्रन्थ “मिलिन्दपन्हो” के अनुसार मिलिन्द ने “नागसेन” की सलाह पर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था|
- “मिनान्डर” ( मिलिंद) ने पाटलिपुत्र तक धावे बोले ।उसके सिक्के बालाघाट से प्राप्त हुए हैं।
27.शक राज्यवंश ( 50 बी. सी. से 300 ई. पू.)
इस राजवंश के शासक “रूद्रदामन I” (130-150 ईस्वी) ने काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित “सुदर्शन झील” का जीर्णोद्धार करवाया था।शक शासकों ने सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में अभिलेख (जूनागढ़ अभिलेख) जारी किये थे| पश्चिम भारत में यूनानी राज्य के स्थान पर शक राज्य स्थापित हुआ।
- चीन के पश्चिम से भारत आने वाली शक जाति ने अपने नासिक उज्जैन मथुरा पंजाब में अपने क्षत्रप राज्य स्थापित किए थे।
- मध्यप्रदेश के संदर्भ में नासिक और उज्जैन के शक राज्य ही महत्वपूर्ण है जहां क्रमशः क्षहरात और कार्दमक वंश के शक राजा थे।
Note:
दोस्तों मध्य प्रदेश के अन्य राजवंश से संबंधित तथ्य और विवरण को हम अगली पोस्ट में उपलब्ध कराएंगे।
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धन्यवाद
राजेंद्र ठाकुर
सर आपके दुवारा नोट्स बहुत ही dipli होते है जो किसी भी एक्जाम के लिए टॉपिक वाइस बहुत ही अच्छे होते है सर ऐसे ही आप बनाते रहिये जिससे हमारे विषय कम्प्लीट हो जाएंगे आपको बहुत ही धन्यवाद सर
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