राज्य लोक सेवा आयोग | गठन | कार्य
राज्य लोक सेवा आयोग का परिचय
केंद्र के संघ लोक सेवा आयोग के समांतर राज्यों के राज्य लोक सेवा आयोग , संविधान के 14 भाग में अनुच्छेद 315 से 320 में ही राज्य लोक सेवा आयोग की स्वतंत्रता एवं शक्तियों के अलावा इसके गठन एवं सदस्यों की नियुक्तियों एवं बर्खास्तगी इत्यादि का उल्लेख किया गया है।
राज्य लोक सेवा आयोग का गठन
राज्य लोक सेवा आयोग में एक अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य होते हैं जिन्हें राज्य का राज्यपाल नियुक्त करता है संविधान में आयोग की संख्या का उल्लेख नहीं किया गया है यह राजपाल के विवेक पर छोड़ दिया गया है इसके अतिरिक्त आयोग के सदस्यों की वांछित योग्यता का भी जिक्र नहीं किया गया है परंतु यह आवश्यक है कि आयोग के आधे सदस्य को भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्ष काम करने का अनुभव हो संविधान ने राज्यपाल को अध्यक्ष व सदस्यों की सेवा की शर्तें निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है
आयोग के अध्यक्ष व सदस्य पद ग्रहण करने की तारीख से 6 वर्ष की अवधि तक या 62 वर्ष की आयु तक इनमें से जो भी पहले हो अपना पद धारण कर सकते हैं हालांकि वे कभी भी राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप देतेहैं।राज्यपाल दो परिस्थितियों में राज्य लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर सकता है।
- जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो या जब अध्यक्ष अपना कार्य मे अनुपस्थिति हो।
- अन्य दूसरे कारणों की वजह से नहीं कर पा रहा हो दूसरा कार्यवाहक अध्यक्ष तब तक कार्य संभालेगा जब तक के अध्यक्ष पुणे अपना काम नहीं संभाल लेता या अध्यक्ष नियुक्त किया गया व्यक्ति काम पर नहीं आता है।
आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का निष्कासन :
भले ही राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष वह सदस्य की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं लेकिन इन्हें केवल राष्ट्रपति ही हटा सकता है राज्यपाल नहीं राष्ट्रपति उन्हें उसी आधार पर हटा सकता है जिन आधारों पर यूपीएससी के अध्यक्ष व सदस्य को हटाया जाता है अतः उन्हें निम्नलिखित आधारों पर हटाया जा सकता है पहला अगर उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है दूसरा अपनी पदावली के दौरान अपने पति के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगा हो तीसरा तीसरा अगर राष्ट्रपति यह समझता है कि वह मानसिक व शारीरिक शैथिल्य के कारण पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं।
इसके अलावा राष्ट्रपति राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य किसी सदस्य को उनके कदाचार के कारण भी हटा सकता है परंतु ऐसे मामले में राष्ट्रपति इसे उच्चतम न्यायालय के संदर्भित करता है यदि उच्चतम न्यायालय जांच के बाद उन्हें बर्खास्त करने या दी गई सलाह का समर्थन करता है तो राष्ट्रपति अध्यक्ष व अन्य सदस्यों को हटा सकता है संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले में दी गई रसाला राष्ट्रपति के लिए बाध्य न्यायालय द्वारा दी जा रही जांच के दौरान राज्यपाल अध्यक्ष व अन्य सदस्यों को निलंबित कर सकता है
राज्य लोक सेवा आयोग की स्वतंत्रता ::
संघ लोक सेवा आयोग की तरह ही संविधान में राज्य लोक सेवा आयोग के निष्पक्ष व स्वतंत्र कार्य करने के निम्नलिखित उपबंध हैं।
- राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को राष्ट्रपति संविधान में वर्णित आधारों पर ही हटा सकता है अतः वह उगने उस पद अवधि तक काम करने की सुरक्षा है।
- अध्यक्षा सदस्यों की सेवा की शर्तें राज्यपाल तय करता है आता नियुक्ति के बाद उन में लाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
- राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष यह सदस्यों को वेतन भत्ता व पेंशन सभी खर्च राज्य की संचित निधि से मिलते हैं । राज्य की विधान मंडल द्वारा इस पर मतदान नहीं होता है।
- राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष कार्यकाल के बाद संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य तथा किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बनने का पात्र होता है। लेकिन भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी और नियोजन का पात्र नहीं होता है।
- आयोग का सदस्य कार्यकाल के बाद संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या सदस्य बनने या राज्य लोक सेवा आयोग व अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, परंतु भारत सरकार या किसी राज्य के सरकार के अधीन नियोजन का पात्र नहीं होगा।
- राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्य कार्यकाल के बाद को पुनः नियुक्त नहीं किया जा सकता यानी दूसरे कार्यकाल के योग्य नहीं माना जाएगा।
राज्य लोक सेवा आयोग के कार्य ::
- यह राज्य की सेवाओं में नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का आयोजन करता है।
- कर्मिक प्रबंधन से संबंधित निम्नलिखित विषयों पर परामर्श देता है ।
- सिविल सेवाओं और सिविल पदों के लिए भर्ती पद्धतियों से संबंधित सभी विषयों पर परामर्श देता है
- सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्ति करने में तथा सेवा पदोन्नति व एक सेवा से दूसरे सेवा में तबादले के लिए अनुसरण किए जाने वाले सिद्धांत के संबंध में परामर्श देता है।
- सिविल सेवाओं और पदों पर स्थानांतरण करने में पदोन्नति की अनुशंसा करता है और राज्य लोक सेवा आयोग से अनुमोदित करने का आग्रह करता है।
- राज्य सरकार में सिविल हैसियत में कार्य करते हुए सभी अनुशासनिक विषय जैसे ज्ञापन या अर्जी सहित निंदा प्रस्ताव रोकना, धन हानि की पुनः प्राप्ति निम्न सेवाओं या पद में कर देना, सेवा से हटा देना सेवा से बर्खास्त कर देना।
- अपने कर्तव्यों के निष्पादन के लिए उसके विरुद्ध विधिक कार्यवाहीयों की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा खर्च की गई अदायगी का दावा करना।
- कर्मिक प्रबंध से संबंधित अन्य मामले।
राज्य लोक सेवा आयोग की सीमाएं
निम्नलिखित विषयों को राज्य लोक सेवा आयोग के अधिकार क्षेत्र के बाहर रखा गया है ।दूसरे शब्दों में निम्नलिखित विषयों पर राज्य लोक सेवा आयोग को संपर्क नहीं किया जा सकता है।
- पिछड़ी जातियों की नियुक्ति या पदों के आरक्षण के मामले पर।
- सेवाओं व पदों पर नियुक्ति के लिए अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजातियों के दावों को ध्यान में रखने के मामले पर।
राज्यपाल की भूमिका
राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग के दायरे से किसी पद से वाया विषय को हटा सकता है संविधान कहता है कि राज्यपाल राज्य सेवाओं व पदों से संबंधित नियम बना सकता है जिसके लिए राज्य
लोक सेवा आयोग से संपर्क करने की जरूरत नहीं है, परंतु इस तरह के नियमन को राज्यपाल को कम से कम 14 दिनों तक के लिए राज्य विधानमंडल के समक्ष रखना होगा राज्य का विधान मंडल इसे संशोधित या खारिज कर सकता है।
राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिका
संविधान राज्य लोक सेवा आयोग को राज्य में मेरिट पद्धति के प्रहरी के रूप में देखता है। इसकी भूमिका राज्य सेवाओं के लिए भर्ती करना वाह पदोन्नति या अनुशासनात्मक विषयों पर सरकार को सलाह देना है। सेवाओं के वर्गीकरण भुगतान व सेवाओं के कैडेट प्रबंध प्रशिक्षण आदि से इसका कोई सरोकार नहीं है ।इस तरह के मामलों को कर्मिक विभाग या सामान्य प्रशासन विभाग देखता है अतः राज्य लोक सेवा आयोग मात्र राज्य का केंद्रीय भर्ती अभिकरण है ।जबकि कर्मिक विभाग या सामान्य प्रशासनिक विभाग राज्य का केंद्रीय कार्मिक अधिकरण है, राज्य लोक सेवा आयोग की भूमिका न केवल सीमित है बल्कि उसके द्वारा किए गए सुझाव भी सलाह कारी प्रवृत्ति के होते हैं, यानी यह सरकार के लिए बाध्य नहीं है यह राज्य सरकार पर निर्भर है कि वह सुझावों पर अमल करें या खरीद करें। सरकार की एकमात्र जवाबदेही है कि वहां विधानमंडल को आयोग के सुझावों से विचलन का कारण बताएं। इसके अलावा सरकार ऐसी नियम बना सकती है जिससे राज्य लोक सेवा आयोग के सलाहकार इ कार्य को नियंत्रित किया जा सके ।सन 1964 में राज्य सतर्कता आयोग के गठन के अनुशासनात्मक विषयों में राज्य लोक सेवा आयोग के कार्य को प्रभावित किया, ऐसा इसलिए क्योंकि किसी नौकरशाह पर अनुशासन कार्रवाई करने से पहले दोनों से संपर्क किया जाने लगा। समस्या तब खड़ी होती है जब दोनों ही सलाह में मतभेद हो क्योंकि राज्य लोक सेवा आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है इसलिए वह राज्य सतर्कता आयोग से अधिक प्रभावी है। जिला न्यायाधीश के अलावा न्यायिक सेवा में भर्ती से संबंधित नियम बनाने के मामले पर राज्यपाल राज्य लोक सेवा आयोग से संपर्क करता है। इस मामले में संबंधित उच्च न्यायालय से भी संपर्क किया जा सकता है।
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राजेंद्र ठाकुर