कानरा नृत्य
कानरा नृत्य : कानड़ा नृत्य-कांडरा नृत्य
(कानड़ा नृत्य-कांडरा नृत्य) कानरा नृत्य बुंदेलखंड का लोक नृत्य है।कानरा नृत्य मध्य प्रदेश के प्रमुख लोक नृत्य-नृत्यों में से एक है।(कानड़ा,कांडरा)कानरा बुंदेलखंड के लोक नृत्य-नृत्यों में से एक है।कानड़ा या कांडरा या कानरा नृत्य बुंदेलखंड में मुख्य रूप से धोबी जाति या समाज का नृत्य है। कानरा धोबी जनजाति के द्वारा मनाया जाता है।बुंदेलखंड में कानरा नृत्य धोबी समाज या जाति के द्वारा विवाह उत्सव में किया जाने वाला नृत्य है।यह नृत्य धोबी समाज या जाति के स्त्री और पुरुषों के द्वारा विवाह उत्सव पर किया जाता है। बुंदेलखंड अंचल में कानरा नृत्य को कानड़ा नृत्य,कांडरा नृत्य और कांगड़ा नृत्य के नाम से भी जाना जाता है।कानरा नृत्य मध्य भारत, मध्य प्रदेश और बुंदेलखंड में धोबी जाति या समाज का परंपरागत एवं प्रमुख नृत्य है।यह नृत्य विवाह उत्सव जन्मोत्सव आदि के शुभ अवसरों पर किया जाता है। कानरा में नृत्य करने वाले घेरे (कौड़ा) में फिरकी के समान घूम घूम कर नाचा जाता है।जिस प्रकार मट्ठा बिलोने की रस्सी घेर घेर घूमती रहती है उसी तरह घूम घूम कर नृत्य करते हैं।यह नृत्य घूम घूम कर फिरकी के समान नाचा जाता है,इसलिए इस नृत्य का नाम कानरा नृत्य पड़ा।इस नृत्य में नृत्य करने वाले की वेशभूषा बड़ी मनमोहक होती है,सफेद रंग का बागा पहने हुए, सिर पर पाग बांधे हुए और पाग में हरे रंग की कलगी लगाए हुए तथा पैरों में घुंगरू बंधे होते हैं और इस नृत्य में बिरहा गीत गाए जाते हैं।इस नृत्य में सारंगी ढोलक घुंघरू वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
कानरा नृत्य का इतिहास
(कानड़ा,कांडरा) कानरा नृत्य मध्य काल से प्रचलित है।15वी शताब्दी में जब कृष्ण कथाएं गीतों का प्रचलन था,तभी से (कानड़ा,कांडरा) कानरा नृत्य का जन्म हुआ। और मध्य काल के पहले से प्रचलन में रहा फिर बीसवीं शताब्दी के पहले 2 दशकों तक सर्वाधिक प्रचलन में रहा लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ-साथ लुप्त होता गया।यह नृत्य मूल रूप से जातिगत नृत्य है धोबी समाज के लोग इस नृत्य को करते हैं कई कई स्थानों किस नृत्य को धुबियाई नृत्य भी कहते है। धोबी जाति या समाज में वैवाहिक अवसरों पर कानड़ा या कांडरा या कानरा नृत्य किया जाता है।पूर्व के समय में तो शादी विवाह में यह अनिवार्य रूप से किया जाता था परंतु वर्तमान में यह नृत्य लुप्त होता जा रहा है।कुछ दशकों के पहले इस नृत्य को वैवाहिक रस्मों में जैसे मेहर का पानी भरने,दूल्हे की रछवाई निकालने पर,द्वारचार,टीका, भाँवर,विदाई आदि के अवसरों पर एवं जन्म के समय भी इस नृत्य को करने की परंपरा थी।
कानरा नृत्य में नर्तकों की वेशभूषा
कानरा नृत्य (कानड़ा नृत्य कांडरा नृत्य) पुरुष प्रधान नृत्य है। कानरा करने वाला प्रधान नर्तक होता है। इस नृत्य की पारंपरिक विशेष पोशाक या परिधान होती है।यह पोशाक मध्यकाल के समय के जैसी लगती है।इस नृत्य में नर्तक सफेद रंग का कालिदार बागा पहनता है और सिर पर राजसी पगड़ी धारण करता है या साफा पहनता है और पगड़ी पर कलगी भी लगाता है,कंधों पर रंगीन कंघिया,गले में ताबीज,कमर में फैंटा, कंधे से कमर तक सेली, कमर में रंग-बिरंगे बटुए लटके रहते हैं,दोनों बाजुओं में बाजूबंद,पैरों में बड़े-बड़े घुंगरू, चेहरे पर हल्का मेकअप,आंखों में सुरमा या काजल लगाते हैं,कानरा नृत्य का प्रमुख वाद्य यंत्र सारंगी या केकड़िया है।इस वाद्य यंत्र को नर्तक स्वयं ही बजाता है और नृत्य के साथ-साथ गीत का गायन भी स्वयं ही करता है।अन्य वाद्य यंत्रों में खंजड़ी, मृदंग,तारें,झूला एवं लोटा प्रयोग किया जाता है।